भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा:- 229
मिथ्या साक्ष्य के लिए दण्ड
(1) जो कोई जानबूझकर किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रकम में मिथ्या साक्ष्य देगा या किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग में लाए जाने के प्रयोजन से. मिथ्या साक्ष्य गढेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा, और दस हजार रुपए तक के जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट से भिन्न किसी अन्य मामले में जानबूझकर मिथ्या साक्ष्य देगा या गढ़ेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और पांच हजार रुपए तक के जुर्माने से भी दायी होगा।
व्याख्या:-1. सेना न्यायालय के समक्ष विचारण न्यायिक कार्यवाही है।
व्याख्या:-2. न्यायालय के समक्ष कार्यवाही प्रारम्भ होने के पूर्व जो विधि द्वारा निर्दिष्ट अन्वेषण होता है, वह न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।
उदाहरण:- यह अभिनिश्चय करने के प्रयोजन से कि क्या सुरेश को विचारण के लिए सुपुर्द किया जाना चाहिए, मजिस्ट्रेट के समक्ष जांच में राजेंद्र शपथ पर कथन करता है, जिसका वह मिथ्या होना जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए राजेंद्र ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
व्याख्या:-3. न्यायालय द्वारा विधि के अनुसार निर्दिष्ट और न्यायालय के प्राधिकार के अधीन संचालित अन्वेषण न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, चाहे वह अन्वेषण किसी न्यायालय के सामने न भी हो।
उदाहरण:- सम्बन्धित स्थान पर जाकर भूमि की सीमाओं को अभिनिश्चित करने के लिए न्यायालय द्वारा प्रतिनियुक्त अधिकारी के समक्ष जांच में क शपथ पर कथन करता है जिसका मिथ्या होना वह जानता है। यह जांच न्यायिक कार्यवाही का एक प्रक्रम है, इसलिए मोहन ने मिथ्या साक्ष्य दिया है।
अपराध का वर्गीकरण
उपधारा (1)- सजा - 7 वर्ष के लिए कारावास और 10,000 रुपए का जुर्माना
अपराध:- असंज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
अशमनीय:- अशमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता नही किया जा सकता हैं।
उपधारा (2)- सजा - 3 वर्ष के लिए कारावास और 5,000 रुपए का जुर्माना
अपराध:- असंज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
अशमनीय:- अशमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता नही किया जा सकता हैं।
(IPC) की धारा 193 को (BNS) की धारा 229 में बदल दिया गया है। - अगर आप चाहे तो लोगो पर क्लिक करके देख सकते है |
अघ्याय 2 की सारी धाराएं विचारण के पहले की (इनके प्रारूप ऊपर हेड में दिए गए है)